धारा 370 हटाने के बाद पिछले तीन सालों में कश्मीर में मूल अधिकारों और लोकतंत्र की हत्या हो चुकी है: इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल - IAMC

धारा 370 हटाने के बाद पिछले तीन सालों में कश्मीर में मूल अधिकारों और लोकतंत्र की हत्या हो चुकी है: इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल

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वाशिंगटन डीसी (5 अगस्त 2022) – जानेमाने अमेरिकी मानवाधिकार संगठन इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) ने कहा है कि तीन साल पहले धारा 370 हटाए जाने के बाद से जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों का उल्लंघन चरम पर पहुंच गया है और आम नागरिक को जम कर सताया जा रहा है. अधिकार ख़त्म हो चुके हैं और लोकतंत्र की हत्या हो चुकी है.

शुक्रवार को अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन डीसी जारी एक विज्ञप्ति में आईएएमसी अध्यक्ष सय्यद अली ने कहा कि जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन साल पहले ये दावा किया था कि धारा 370 हटाने से कश्मीर में सुधार आएगा, सच ये है कि सुरक्षाबलों की संगीनों के साये में रह रहे आम लोग मूल अधिकारों से ही वंचित हो चुके हैं.

“धारा 370 हटाने के बाद से एंकाउंटर के नाम पर मासूमों की हत्याएँ हो रही हैं. रातोंरात लोग उठा लिए जा रहे हैं और उनका कोई पता नहीं चल रहा है,” सय्यद अली ने कहा. “सैंकड़ों मासूम लोगों को बग़ैर वजह जेल भेज दिया गया है. पुलिस कस्टडी और जेलों में लोगों को यातना दी गई. महीनों इंटरनेट पर बैन रहा. अपने ही सूबे में लोग खुल कर घूम नहीं सकते हैं. एक जगह जमा नहीं हो सकते हैं. मस्जिदें तक बंद कर दी गई हैं.”

सय्यद अली ने कहा धारा 370 हटाने से मोदी की भारतीय जनता पार्टी की मुस्लिम-विरोधी मंशा को भले ही सुकून पहुँचा हो लेकिन कश्मीर के लोगों की ज़िंदगी में अँधेरा और पसरा है.

ज्ञात रहे कि तीन साल पहले आज के ही दिन 5 अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने एक झटके में कश्मीर से संवैधानिक धारा 370 हटा दी थी और जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा ही ख़त्म कर दिया था. तबसे मोदी सरकार दुनिया के सामने झूठ बोल रही है कि कश्मीर में हालात सामान्य हैं जबकि असलियत ठीक विपरीत है. पूर्व मुख्यमंत्रियों तक को ही अपने घरों में नज़रबंद किया गया है और विरोध की हर आवाज़ का दमन किया गया है.

सय्यद अली ने भारतीय सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करते हुए कहा कि कोर्ट ने ख़ुद 2018 में कहा था कि धारा 370 भारतीय संविधान का अभिन्न अंग है जिसे हटाया नहीं जा सकता है. लेकिन तीन साल बाद आज वही अदालत धारा 370 हटाने के मोदी को फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुनवाई तक करने को तैयार नहीं है.

ये वही सुप्रीम कोर्ट है जो मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने वाले हिंदू टीवी ऐंकर अर्णव गोस्वामी और मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान करने वाले हिंदू संतों को  गिरफ़्तारी से बचा ले जाता है.

सैय्यद अली ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों की मर्ज़ी के बग़ैर धारा 370 हटाने के साथ-साथ मोदी सरकार ने राज्य को दो भागों में भी बाँट दिया था. उस वक़्त सरकार ने वादा किया था कि वो जल्द ही दोबारा जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देगी और चुनाव कराएगी लेकिन ये दोनों वायदे तीन साल बाद भी पूरे नहीं किए गए हैं.

दुनिया के जानेमाने मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच (HRW) द्वारा कल जारी किए गए उस बयान का भी सैय्यद अली ने स्वागत किया जिसमें कहा गया है कि धारा 370 हटाने के बाद से जम्मू-कश्मीर में स्वतंत्र अभिव्यक्ति, शांतिपूर्ण सभा और अन्य दूसरे नागरिक अधिकार प्रतिबंधित हैं और सरकार की दमनकारी नीतियों और सुरक्षा बलों की ज़्यादतियों की जाँच और मुक़दमा चलाने में नाकामी ने कश्मीरियों में असुरक्षा बढ़ा दी है.

एचआरडब्लू ने ये भी कहा है कि धारा 370 हटाये जाने के बाद आतंकवाद ख़त्म होने का दावा किया जा रहा है जबकि इन तीन सालों में 118 नागरिकों की हत्या हुई है जिनमें 21 हिंदू और सिख थे और बाक़ी मुस्लिम थे.

सैय्यद अली ने कहा जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक कार्यकर्ताओं का ही नहीं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों का दमन भी जारी है. उन्हें पेशेवर काम के लिए विदेश जाने से भी रोका जा रहा है. आम लोगों को कर्फ़्यू के साये में रहना पड़ रहा है. सरकार की ओर से तरक्की और ख़ुशहाली के बड़े-बड़े दावे किये जा रहे हैं जबकि राज्य की बेरोज़गारी दर 20.2 फ़ीसदी हो चुकी है जो 2018 में 12.7 फ़ीसदी थी.

“हालत ये है कि जिन कश्मीरी पंडितों का चेहरा सामने करके बीजेपी ने पूरे देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके वोटों की फ़सल काटी है, वे भी ख़फ़ा हैं. उनकी सुरक्षा और रोज़गार को लेकर भी मोदी सरकार कुछ करने में नाकाम रही है. 370 हटाने के साथ मोदी सरकार ने जितने भी वादे किये थे वो सभी तीन साल बाद अधूरे हैं.”

सैय्यद अली ने मांग की जेल भेजे गए कश्मीरी कार्यकर्ताओं, जैसे ख़ुर्रम परवेज़, और पत्रकारों, जैसे फ़हाद शाह, आसिफ़ सुल्तान और सज्जाद गुल, को भारत सरकार फ़ौरन रिहा करे.

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